बारिश का मौसम और गरमा गर्म चाय पकोड़े । बारिश में चाय पीने का मज़ा ही कुछ और है , वो भी जब चाय मालती के हाथ की बनी हो। सावन की पहली बारिश, बारिश में भीगी मिट्टी की खुशबू खिड़की के बाहर और पकोड़ो की खुशबू घर के अंदर और साथ में सदाबहार हिन्दी गाने माहौल को और भी उम्दा कर देते । मालती जरा.. जी जी, पता है मुझे आपके लिए पकोड़े और चाय ही बना रही हूं और फिर हम दोनो ही हंस देते।
मालती को गुजरे 5 साल हो गए थे । ना जाने क्यों आज मालती की बहुत याद आ रही थी। शायद इसलिए क्योंकि फिर से बारिश ने खिड़की पर दस्तक दी थी या फिर क्योंकि आज हमारी शादी की पचासवीं सालगिरह थी । मन हुआ कि फिर से एक बार मालती को आवाज़ लगाऊं आज और वो हँसते हुए रसोई से आवाज़ दे और फिर एक बार मालती के हाथ के बने चाय और पकोड़े खाऊ।
मालती जरा.. मैने जैसे ही आवाज़ लगाई , दरवाजे पर दस्तक हुई । अपनी छड़ी संभालते हुए मैने दरवाजा खोला सामने कोई भी नहीं था। मैने दाई बायी तरफ भी देखा कोई दिखाई नहीं दिया । मोहल्ले के बच्चे होंगे सोच के दरवाज़ा बंद करने ही लगा था तो देखा एक कप चाय और पैकेट भर पकोड़े ज़मीन पर पड़े थे।
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